Wednesday, 14 July 2010

सैनिक और कवि




हे सैनिक,जन्म जात तूं,
सार्थक मूल्यों में गढा गया
देश, धर्म संरक्षण को,
दृढ़ता से उनमें जड़ा गया

सम्भव नहीं भुलाना उनको,
आत्मसात हो, पैठे गहरे
नहीं समझ पायेगा तूं,
छुपे मुखौटे ,नकली चहरे

सीमा से हटकर रहने में,
अनगिन अवरोधन आयेंगे
विद्वेष, ईर्षा भरे भाव,
दुर्द्धर बिष फैलायेंगे

नीलकंठ बन यह सब तुमको,
हंस हंस कर पी लेना है
धैर्य असीमित संचित कर,
निज होंठों को सी लेना है

यदि मार्ग चुना है रचना का,
तो फिर जी, कृतित्व के बल पर
अपनी प्रतिभा से हो प्रदीप्त,
अपने कौशल को उन्नत कर

कुत्सित, कटु, कटाक्ष ठुकरा,
सुजन-यज्ञ में समिधा जोड़
दुष्टों के गर्हित शब्द भुला,
मत भाग, सृजन मैदान छोड़



श्रीप्रकाश शुक्ल
१४ जून २०१०









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