tag:blogger.com,1999:blog-53952186476346877.post323943742896125800..comments2023-06-17T06:38:05.258-07:00Comments on Bikhari Anubhutiyan: wgcdrspshttp://www.blogger.com/profile/15958618097794365101noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-53952186476346877.post-35926434867697530682010-09-04T21:11:45.463-07:002010-09-04T21:11:45.463-07:00कविता:
आत्मालाप:
संजीव 'सलिल'
*
क्यों ख...कविता:<br /><br />आत्मालाप:<br /><br />संजीव 'सलिल'<br />*<br /><br />क्यों खोते?,<br />क्या खोते?,<br />औ' कब? <br />कौन किसे बतलाये?<br />मन की मात्र यही जिज्ञासा<br />हम क्या थे संग लाये?<br />आए खाली हाथ<br />गँवाने को कुछ कभी नहीं था.<br />पाने को थी सकल सृष्टि<br />हम ही कुछ पचा न पाये.<br />ऋषि-मुनि, वेद-पुराण,<br />हमें सच बता-बताकर हारे<br />कोई न अपना, नहीं पराया<br />हम ही समझ न पाये.<br />माया में भरमाये हैं हम<br />वहम अहम् का पाले.<br />इसीलिए तो होते हैं<br />सारे गड़बड़ घोटाले.<br />जाना खाली हाथ सभी को<br />सभी जानते हैं सच.<br />धन, भू, पद, यश चाहें नित नव<br />कौन सका इनसे बच?<br />जब, जो, जैसा जहाँ घटे<br />हम साक्ष्य भाव से देखें.<br />कर्ता कभी न खुद को मानें<br />प्रभु को कर्ता लेखें.<br />हम हैं मात्र निमित्त, वही है<br />रचने-करनेवाला.<br />जिससे जो चाहे करवा ले<br />कोई न बचनेवाला.<br />ठकुरसुहाती उसे न भाती<br />लोभ, न लालच घेरे.<br />भोग लगा खाते हम खुद ही<br />मन से उसे न टेरें.<br />कंकर-कंकर में वह है तो<br />हम किससे टकराते?<br />किसके दोष दिखाते हरदम?<br />किससे हैं भय खाते?<br />द्वैत मिटा, अद्वैत वर सकें<br />तभी मिल सके दृष्टि.<br />तिनका-तिनका अपना लागे<br />अपनी ही सब सृष्टि.<br /><br />*******************<br /><br /><br />Acharya Sanjiv Salil<br /><br />http://divyanarmada.blogspot.comDivya Narmadahttps://www.blogger.com/profile/13664031006179956497noreply@blogger.com